Describe the achievements of Kumargupta I.

Describe the achievements of Kumargupta I.


इस तरह इन सभी धार्मिक उपासकों को पूर्ण रूप से धार्मिक स्वतन्त्रता प्राप्त थी । इन्हें अपनी श्रद्धा के अनुरूप मूर्तियों और मन्दिरों आदि के निर्माण की पूरी छूट थी । सम्राट स्वयं वैष्णव होते हुए भी उसका धार्मिक दृष्टिकोण बड़ा ही विस्तृत एवं सहिष्णुतापूर्ण था। उसने राज्य के उच्च पदों पर सभी धर्मों के मानने वालों को अवसर दिया। उसकी धार्मिक सहिष्णुता की जानकारी पृथ्वीषेण की नियुक्ति से मिलती है। पृथ्वीषेण एक शैवमतावलम्बी होते हुए भी राज्य के उच्च पद पर आसीन था। करमकाण्डा के अभिलेख से विदित होता है कि पृथ्वीषण ने एक शिव मूर्ति की स्थापना करवाई। विलसद के अभिलेख से ध्रुव शर्मा नामक व्यक्ति की जानकारी मिलती है जिसने कि कुमारगुप्त के शासनकाल में स्वामी महासन के मन्दिर का निर्माण करवाया था। एक सूर्य मन्दिर के निर्माण की जानकारी हमें मन्दसौर के अभिलेख से मिलती है इस अभिलेख के अनुसार दशपुर के बुनकरों की एक समिति ने इस मन्दिर का निर्माण करवाया। मानकुंवर के अभिलेख से ज्ञात होता है कि बुद्धमित्र नाम के एक व्यक्ति ने गौतम बुद्ध की एक प्रतिमा का निर्माण किया था। ह्वेनसांग के विवरण से ज्ञात होता है कि स्वयं कुमार गुप्त प्रथम ने नालन्दा बौद्ध विहार की स्थापना की थी।

उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि कुमार गुप्त प्रथम एक धार्मिक सहिष्णुता की नीति का पालक रहा। उसने वैष्णव धर्मावलम्बियों को ही नहीं अन्य धर्मावलम्बियों को भी अपनी श्रद्धानुसार धार्मिक आचरण करने की स्वतंत्रता प्रदान की।

कुमारगुप्त प्रथम का चरित्र  

कुमारगुप्त प्रथम के अभिलेखों में उसे पिता से प्राप्त समुद्र तक फैले साम्राज्य का शासक के रूप में वर्णित किया गया है। उसने सम्भवत: कोई नया प्रदेश नहीं जीता लेकिन पैतृक साम्राज्य को अक्षुण्ण बनाये रखा। अतः भले ही कुमार गुप्त विजेता नहीं था परन्तु उसमें अपने साम्राज्य को सुरक्षित रखने हेतु बाहुबल की कमी न थी। उसका साम्राज्य सौराष्ट्र से बंगाल तक विस्तृत था । उसके साम्राज्य में सब राजा, सामन्त, गणराज्य और प्रत्यवर्ती जनपद कुमारगुप्त के वशवर्ती थे। उसके शासनकाल में विशाल गुप्त साम्राज्य में सर्वत्र शान्ति विराजती थी। उसकी प्रजा बड़ी ही सम्पन्न और सुखी थी। अनेक इतिहासकार कुमारगुप्त प्रथम का मूल्यांकन करते हुए अपने अपने कथन प्रस्तुत करते हैं। डॉ. वी. सी. पाण्डेय का कथन है कि बहुसंख्यक अभिलेखों, मुद्राओं और विशाल साम्राज्य से प्रकट होता है कि कुमार गुप्त एक शक्तिशाली राजा था और उसने अपने पिता से प्राप्त साम्राज्य की पूर्णरूप से रक्षा की।

कुमारगुप्त प्रथम की धार्मिक नीतियाँ

| डॉ.उदयनारायण राय के अनुसार 'स्कन्दगुप्त के भीतरी अभिलेख में कुमारगुप्त प्रथम को बुद्धिमान, शक्ति सम्पन्न, यशस्वी, पृथ्वी का स्वामी तथा लक्ष्मीवान् कहा गया है। ये शब्द उसकी महत्ता के परिचायक हैं।' डॉ. राजबली पाण्डेय का कथन है कि ‘कुमारगुप्त स्वयं बड़ा विजेता ही नहीं था किन्तु बपौती में जो साम्राज्य मिला था उसको उसने सुरक्षित रखा। उसके समय के उत्कीर्ण लेखों और उसके सिक्कों के प्रचलन से प्रकट है कि गुप्त साम्राज्य के दूर-दूर के प्रान्त उसके अधिकार में थे उसके समय में गुप्तों का आधिपत्य सारे भारत पर बना रहा। शान्ति, स्थिरता और सुव्यवस्था के कारण गुप्त साम्राज्य इस समय अपनी समृद्धि की चरम सीमा पर धा। यह बात उस समय के सिक्कों की विशुद्धता और सौन्दर्य स्थापत्य और मूर्तिकला के विकास तथा आर्थिक और व्यापारिक उन्नति से प्रमाणित होती है। | डॉ. आरएन. दाण्डेकर के शब्दों में ‘यद्यपि कुमारगुप्त ने अपनी तुलना प्राय: देवताओं के सेनानायक से की है परन्तु वह न तो समुद्रगुप्त की तरह वीर योद्धा ही था और न चन्द्रगुप्त द्वितीय की तरह मनुष्यों का एक निर्भीक नेता ही । उसको शासनकाल सुख शान्ति और समृद्धि के लिए विख्यात है।' डॉ. उपेन्द्रनाथ ठाकुर का कथन है कि ‘कुमार गुप्त विद्वानों का आश्रयदाता भी था। उसके विभिन्न प्रकार के सिक्कों से उसके रूप, आकृति और गुणों का पर्याप्त परिचय मिल जाता है। उसके सिक्कों से उसके नाटे होने का संकेत मिलता है।

कुमारगुप्त प्रथम के समय के सिक्के एवं मुहरें

साथ ही सुडौल शरीर एवं मांसल बाहु तथा वक्ष चौड़ा होने का भी प्रमाण हमें प्राप्त सिक्कों से मिलता है। वह शिकारी भी था तथा घुड़सवारी और हाथी पर चढ़ने में उसकी काफी रुचि थी । वह अपने पितामह समुद्रगुप्त की तरह संगीतज्ञ भी था। उसकी प्रभुता का परिचय हमें उसकी उपाधियों से मिलता है। सिक्कों एवं अभिलेखों में उसे महेन्द्रादित्य, अजित महेन्द्र, श्री महेन्द्र, सिंहमहेन्द्र, महेन्द्रकुमार आदि उपाधियों से विभूषित किया गया है। वह दयालु था तथा प्रजा का कल्याण उसका सर्वोपरि लक्ष्य था।' डॉ. आरसी. मजूमदार के कथनानुसार ‘साधारणतया कुमारगुप्त प्रथम का शासन रुचि और महत्त्व से रहित माना जाता है। परन्तु उसके चरित्र और कार्यों का मूल्यांकन करते समय हमें कुछ महत्त्वपूर्ण विवरणों को महत्त्व देना पड़ेगा, जिनकी साधारणतया अवहेलना की जाती है। इस युग के अनेक अभिलेख उसके शासनकाल के अन्तिम दिनों के केवल एक सैनिक अभियान का उल्लेख करते हैं जबकि ये सभी अरब सागर से लेकर बंगाल की खाड़ी तक उसके वैयक्तिक शासन में शान्तिपूर्ण स्थायी शासन की जानकारी प्रदान करते हैं। केवल एक शक्तिशाली शासक ही इतने बड़े साम्राज्य को पूरी तरह नियंत्रण में रख सकता है।

कुमारगुप्त प्रथम का मूल्यांकन 

उसकी मृत्यु के थोड़े समय बाद हूणों और अन्य शत्रुओं का सफल प्रतिरोध राजकीय सेना की कुशलता को स्पष्ट करता है और इस सेना को चालीस वर्ष तक शान्तिपूर्ण परिस्थिति में रखा जा सका। यह बात कुमारगुप्त को कम महत्त्व प्रदान नहीं करती है वास्तव में इसका श्रेय कुमार गुप्त के प्रशासन और व्यक्तित्व को है जो साधारणतया आधुनिक इतिहासकारों के द्वारा उसे प्रदान नहीं किया गया है। | इस प्रकार स्पष्ट है कि कुमार गुप्त का शासनकाल कोई अवनति का काल नहीं था। इसने अपने पूर्वजों से प्राप्त साम्राज्य को पूर्णरूप से सुरक्षित रखा। इसके लेखों व मुद्राओं के अनुसार उसके समय में आर्थिक एवं सांस्कृतिक विकास अविच्छिन्न था। बंगाल से प्राप्त लेखों से पता चलता है कि इस नृपति ने गुप्त शासन व्यवस्था में अधिक पूर्णता लाने की कोशिश की थी ।

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