हम माँ दुर्गा-भगवती की आराधना करते हैं, लेकिन यदि हम अपनी जननी माता की सेवा नहीं करते हैं तो माँ की आराधना का फल हमें प्राप्त नहीं होगा। आप अपनी मां की सेवा करें और माता की आराधना करें तो दो-गुना फल प्राप्त होगा लेकिन यदि आप आराधना नहीं कर पा रहे हैं और केवल अपनी माता की सेवा-सुश्रवा करने में जीवन बिता रहे हैं तो भी माँ दुर्गा भगवती आप पर अवश्य ही प्रसन्न होगी। क्योंकि इस संसार में देवी का रूप माँ ही है। ऋग्वेद के वाक सूक्त जिसे देवी सूक्त भी कहा जाता है में महर्षि अम्भूण की वाक नाम की कन्या कहती है कि -
मैं अर्थात् शक्ति ही संपूर्ण जगत को उत्पन्न करने वाली, पालन करने वाली तथा धारण करने वाली हूं। ग्यारह रूद्रों के रूप में मैं ही विचरण करती हूं। आठ वसुओं और बारह आदित्यों के रूप में मैं ही भासमान होती हूं। त्वष्टा, पूषा और भग यानी ऐश्वर्य को मैं ही धारण करती हूं। मैं ही समस्त जगत की ईश्वरी हूं, धन तथा शंति, वृत्ति, lakshmi, दया, तृष्टि आदि के रूप में मैं ही विराजमान हूं और सबसे महत्वपूर्ण यह कि समस्त प्राणियों में वह माँ के रूप में विराजमान है। माँ का यह भाव बड़ा विलक्षण है क्योंकि पुत्र कपूत हो सकता है लेकिन माता कुमाता नहीं हो सकती। नारी जब माँ बनती है तो वह केवल शिशु को जन्म ही नहीं देती स्वयं उसका भी पुर्नजन्म होता है। फिर वह शिशु उसके शरीर का हिस्सा होता है। उसका हृदय वात्सल्य, दया, करूणा और ममता से भर जाता है। स्वयं माता का जीवन गौण होकर उसकी सारी खुशियां बच्चे की खुशियों से जुड़ जाती है।
भौतिक समृद्धि माँ से ही:
इसे अगर ज्योतिषीय दृष्टिकोण से देखा जाए तो जिस जातक की कुण्डली में चौथा घर मजबूत होता है, वहां सुख का सागर बहता है। जातक को भौतिक सुख-समृद्धि मिलेगी या नहीं यह कुंडली का चौथा घर ही तय करता है। क्यों? क्योंकि चौथा घर माता का होता है। इन सबसे अलग चौथा घर होता है माता, सुख व वाहन का। इसीलिए कुण्डली के चौथे घर को मातृभाव या सुख स्थान भी कहा गया है।
ज्योतिषीय विश्लेषण करते समय माँ के इसी भाव से जातक की सुख-सुविधा और अचल सम्पत्ति के बारे में जाना जाता है। यही घर जातक के जीवन में माता की ओर से मिलने वाले योगदान व जातक के उन सुखों को दर्शाता है जिन्हे वह अपने जीवन काल में भोगता है। इसीलिए अगर जातक की कुण्डली के चौथे घर में किसी ग्रह का बुरा प्रभाव हो तो मातृ दोष माना जाता है। लेकिन अगर इस घर को शुभ ग्रह देख रहे हैं तो जातक के जीवन में सुख-सुविधा, घर-गाड़ी-घोड़ा, नौकर-चाकर सभी भौतिक सुख भोगने को प्राप्त होंगे। अशुभ ग्रहों की दृष्टि से उल्टा परिणाम होगा।
यहीं है स्वर्ग:
स्वर्ग की अवधारणा क्या है? स्वर्ग किसी ने देखा नहीं लेकिन कहा और माना यह जाता है कि स्वर्ग में सारे सुख मिलते हैं। अगर आपको जीते जी स्वर्ग के दरवाजे में प्रवेश करना है तो आप अपनी माँ की सेवा कर ही उसमें प्रवेश पा सकते हैं। आप तो अपनी माँ के चरणों में समर्पित हो जाईये फिर देखिए सुख आपको तलाशते हुए आप तक स्वयं दौड़े चले आएंगे। इसीलिए पूरे जीवन आप अपनी माँ की सेवा करें, उनकी अच्छी तरह से देखभाल करें। माँ की सेवा से भगवती प्रसन्न होकर आपको आशीर्वाद देगी। नवरात्रा में माँ भगवती की पूजा-अर्चना आपके लिए सोने में सुहागा बन जाएगा।
आप यूं तो माँ की देखभाल ही नहीं करें और नवरात्रा में भगवती की पूजा करें तो इससे भगवती प्रसन्न नही होगी, अतः नवरात्रा में पूजा-अर्चना और साधना करें पर साथ ही अपनी जननी अपनी माता की सेवा का भाव सदा मन में रखें, जननी माँ की आशीष माँ भगवती को भी प्रसन्न करेगी। जो लोग अपनी माँ की सेवा करते हैं और फिर नवरात्रा में माँ भगवती की अर्चना और आराधना करते है उनके लिए तो स्वर्ग के सारे सुख इसी जन्म में सुलभ हो जाते हैं। मरने के बाद स्वर्ग में क्या होगा? यह अज्ञात है लेकिन आप जीते जी माँ के चरणों में स्वर्ग पा सकते हैं।
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