भक्ति की खड़ताल बजाऊँ। महावीर की महिमा गाऊँ।।
हृदय जिनके हैं श्रीराम। बार-बार उनका प्रणाम।।
अंजनी देवी पुण्य कमाया। वानराज से ब्याह रचाया।।
कांचन नगरी केसरी रहते। सुख के झरने वहीं पे बहते।।
जब ना हुई अपनी संतान। शिव-विष्णु ने किया कल्याण।।
अंजना कीना तप था कठोर। ना संध्या ना देखे भोर।।
मुनवर ने साधन बतलाया। वेंकटेश्वर पूजा समझाया।।
आकाश गंगा करो स्नान। शुभ जल पी लो हो कल्याण।।
मेष राशि पर सूर्य भगवन। चित्रा नक्षण पूर्णिमा का क्षण।।
वायु देवता प्रगट हो गए। शक्ति से प्रसन्न हो गए।।
पुत्र का मांगा जब वरदान। कहा अंजना कर लो ध्यान।।
पुत्र आपका बन आऊँगा। नाम जगत में कर जाऊँगा।।
केसरी नंदन ने सुख पाया। अंजना का भी मन हर्षाया।।
वायु कैसे पुत्र बनेगा। कैसे पूरी आस करेगा।।
लावण्यवती विशाल लोचना। लगा हुआ था से सोचना।।
कर श्रृंगार पर्वत पर आई। पीली साड़ी छवि बढ़ाई।।
साड़ी किनारा लाल रंग का। शोभित यौवन सभी अंग का।।
मंद मंद समीर चल रही। पुत्र से वंचित बात खल रही।।
तभी वायु का झांेका आया। उसने साड़ी को खिसकाया।।
लगा किसी ने है छू डाला। अंजना ने अपने को संभाला।।
शापित करने की जब ठानी। पवन देव की गूंजी वाणी।।
आने का कारण बतलाया। वेंकटेश्वर का ध्यान दिलाया।।
पतिव्रत का नहीं नाश होएगा। मेरे जैसा पुत्र होएगा।।
तेजस्वी और बु(िमानि। पराक्रमी और धैर्यवान।
मान अंजना प्रसन्न हो गई। समतामयी मूरत हो गई।।
क्षमा कर दिया हुई जो भूल। सपनों के झूले रही झूल।।
गर्भवती फिर होई अंजना। देवों ने आ करी वंदना।।
प्रसन्न हुए केसरी कपिराज। शिव ने संवारे सगरे काज।।
रुद्र रूप में हनुमत आए। अंश ग्यारहवां शिव का पाए।।
चैत्र शुक्ल का मंगलवार। पन्द्रहवां दिन सुख का आधार।।
आए पवन सुत श्री हनुमान। पूर्ण हो गया अब वरदान।।
कोई कहता दिन शनिवार। भक्तों को है सब स्वीकार।।
जब ये पधारे अंजनी नंदन। वायु ने महकाया चंदन।।
सूर्यदेव की किरणें शीतल। बहा नदी में निर्मल ही जल।।
सब रितुओं ने रंग दिखाया। पेड़ों ने भरकर दी छाया।।
बंजर भूमि फूल खिल गए। नदियां नाले स्वच्छ मिल गए।।
महावीर करते लीलाएं। कभी उठाएं कभी बिठाएं।।
किलकारी मारें छल वाली। कभी पेड़ की तोड़ें डाली।।
केसरी नंदन प्यार से चूमे। पीछे पीछे उसके घूमे।।
माँ सुनती तुलताती बातें। सुख में कटती सबकी रातें।।
मोह में शिव बालक बन आए। बिन खाए भूखे सो जाए।।
एक बार प्रभु सबको सताया। अंजना जब कुटिया में लिटाया।।
मुख लग गई उनको भारी। बाहर निकले फिर त्रिपुरारी।।
देखे उगे सूर्य भगवान। उसको मीठा फल लिया जान।।
खाने को छलांग लगाई। मुँह में रख लूँ माँ चिल्लाई।
सूर्य ग्रहण था सु दिन भार। राहु की दृष्टि थी न्यारी।।
काला फल समझा था उसको। झपटे उसपे खा लूँ इसको।।
राहु डरकर इन्द्र पे आया। काँप काँप कर हाल सुनाया।।
दूसरा राहु कौन बताओ। उससे मेरा पीछा छुड़ाओ।।
इन्द्र देवता सोच में पड़ गए। ऐरावत हाथी पर चढ़ गए।।
हाथ वज्र ले बाहर निकले। मारूँगा यदि वो टक्कर ले।।
सफेद हाथी को फल समझा। खा लूँ इसको मन कुछ उलझा।।
देवराज इन्द्र क्रोधि हो गए। सूर्य को मुख में देखते रह गए।।
ठोड़ी ऊपर शास्त्र दिया। इन्द्र ने तेज प्रहार कर दिया।।
मुख से खून निकल जब आया। सूर्य देवता को छुड़वाया।।
बेहोशी में गिरे हनुमान। वायु देवता ने दिया ध्यान।।
बालक को सीने से लगाया। अंजना माँ का मन भर आया।।
वायु देवता क्रोध में आए। हवा रोग दी सब सब घबराए।।
पशु पक्षी सब बेहोश रोए। तीन लोक के प्राणी रोए।।
धरती कुछ श्मशान सी बन गई। चिंता सबको अपनी लग गई।।
जीवन का निर्माण रूक गया। जो भी वीर था वो ही झुक गया।।
बने देवता सब वरदानी। दे दी वर में एक निशानी।।
इन्द्र को ब्रह्मा जी आए। नहीं संकट से अब कौन बचाए।।
अस्त्र शस्त्र कोई भी चलाए। घायल ये कभी हो न पाए।।
हनु जो टूट मत दो ध्यान। नहीं जाएगा इसका मान।।
कहलाएगा ये हनुमान। मिलेगा खूब इन्हें सम्मान।।
ब्रह्मा वायुदेव से बोला। मन इसका अब भी न डोलो।।
बलशाली ये इतना होगा। बु(िदाता ज्ञानी होगा।।
प्रभु राम की भक्ति करेगा। छोटा बड़ा ये रूप धरेगा।।
ब्रह्मास्त्र का नहीं प्रभाव। बुरी बात पे खाएगा ताव।।
वायु देवता ले सम्मान। बर ली हृदय में मुस्कान।।
हनुमान को तभी उठाया। सपने अपने गले लगाया।।
द्धष्यमूक पर्वत पर आए। राम लखन देखे घबराए।।
सुग्रीव जब ध्यान दौड़ाया। बालि का भेजा कोई आया।।
हनुमानजी बने ब्राह्माम। चेहरे पर लाए आकर्षण।।
बोले जाकर आप कौन हो। शांत रूप में खडे मौन हो।।
ब्रह्मा-विष्णु-महेश हो क्या। कोई कपट का धरे वेश क्या।।
नर नारायण तुम कहलाते। साफ-साफ कुछ क्यों न बताते।।
प्रभु राम ने घटा बताई। ये लक्षमण है मेरा भाई।।
हम सीता को खोजने आए। राक्षस जाति के हैं सताए।।
राजा दशरथ पिता हमारे। अयोध्यावासी दास हमारे।।
पिता आज्ञा से वन आए। कौन सहायता अपनी कराए।।
हनुमान ने दुःख को जाना। चरणों में गिर कर पहचाना।।
श्रीराम ने गले लगाया। लक्षमण जी का मन हर्षाया।।
हनुमान कन्धे पर बिठाया। पर्वत पर्वत इन्हें घुमाया।।
शंका सुग्रीव की हट गई। वानर सेना सामने हट गई।।
सुग्रीव से परिचय कराया। बालि वाला कष्ट बताया।।
बालि को प्रभु राम ने मारा। मिला डूबते को था सहारा।।
किष्किन्ध का राज दिलाया। बदले में एक वचन था पाया।।
सीताजी का पता लगाओ। अपना जीवन सफल बनाओ।।
बिन सीता मैं रह नहीं सकता। और किसी से कह नहीं सकता।।
हनुमान कुछ वस्त्र ले आए। कुछ गहने जो पर्वत पाए।।
देख राम के आँसू आए। पहचाने जब उन्हें दिखाए।।
सुग्रीव ने सबको बुलवाया। कौन किधर जाए समझाया।।
वानर भालू दौड़े आए। करेंगे सेवा सब हर्षाए।।
अंगद नल नील जाम्बवान। भेजे सभी दिशाएँ जान।।
दक्षिण में जाओ हनुमान। श्रीराम का करके ध्यान।।
हनुमानजी शंका सुनाई। सीता कैसी हैं रघुराई।।
जब दुष्ट ले भाग रहा था। मैं पर्वत पर जाग रहा था।।
मुखड़ा उनका देख न पाया। चरणों में ही सीस नवाया।।
तुम हो ब्रह्मचारी बलवान। नारी का करते सम्मान।।
श्रीराम ने चिंता जानी। दी मुद्रिका राम निशानी।।
श्रीराम की छाप है इसपे। यही प्रेम सौगात है मुझसे।।
सीता को संदेश भिजवाया। प्रेम में उसके मन भर आया।।
रावण की लंका थी न्यारी। चारों ओर समुद्र था भारी।।
दुर्ग खड़ा था बना विशाल। राक्षस खड़े ठोककर ताल।।
काली गहरी फैली खाई। जिसमें कांटे झाड़ी पाई।।
कोई लाँघकर आ नहीं सकता। बिना मृत्यु के जा नहीं सकता।।
अशोक वाटिका अन्दर न्यारी। फूलों की जहाँ रही-रही क्यारी।।
कंद मूल फल लटक रहे थे। रस के बिन्दु टपक रहे थे।
पेड़ बीच सीता महारानी। सूखी घास पे हैं पटरानी।।
राक्षसनियाँ सब पास खड़ी थीं। रावण के वचनों पे अड़ी थीं।।
अंगद ने वंश सबको बुलाया। सबने अपना भेद बताया।।
कोई जाए अस्सी योजन। पर सबका थोड़ा शंकित मन।।
जाम्वान भालू ये बोले। मेरा बुढ़ाया मुझे टटोले।।
नब्बे योजन तक जा पाऊँ। शायद वापस ना आ पाऊँ।।
शांत रूप बैठे हनुमान। सबको था उनपे अभिमान।।
अपनी शक्ति ज्ञान नहीं है। देवों का वर ध्यान नहीं है।।
सौ योजन का है ये समुन्दर। शक्ति है बस आपके अन्दर।।
अकेले जाओ धर्म निभाओ। सीता कहां है खोज के लाओ।।
खड़े हो गए फिर हनुमान। आया शक्ति का कुछ ध्यान।।
सिंह नाद करके फिर घूरे। सपने करूँ सभी के पूरे।।
लंका भस्म मैं कर डालूँगा। रावण पे पंदा डालूँगा।।
सीता माँ को ….. धरके। ले आऊँगा प्रभु सिमर के।।
महेन्द्र पर्वत शिखर पे आए। मस्तक ऊँचा कर घुर्राए।।
ग्रीवा ऊँची रूप सिकोड़ा। मारी छलाँग मुख को मोड़ा।।
ऊपर उठ गए श्वांस छोड़ के। वृक्ष लताएँ सभी तोड़के।।
समुन्दर के ऊपर दिखती छाया। वेग से सीधे फेर ली काया।।
मन विचार समुन्दर के आया। हनुमान की अद्भुत काया।।
यदि करें थोड़ा विश्राम। बिन थकान के होगा काम।।
आए पास मैनाक चोटी पर। कहा प्रेम से विनती कर कर।।
रास्ते में हनुमान को पाओ। थोड़ी थकावट उनकी मिटाओ।।
पास में हनुमानजी आए। मैनाक ने वचन सुनाए।।
बोले अब नहीं हैं विश्राम। पहले करूँ प्रभु का काम।।
पुरसा ने जब दूर से देखा। क्रोध से सींची मन मंे रेखा।।
छोडूँ ना अपना आहार। मोटा ताजा और रसदार।।
सुरसा से म्र हो बोले। मत खिलवाओ तुम रिचकोले।।
तुम तो हो नागों की माता। हाथ जोड़ मैं शीश नवाता।।
सुरसा ने जब बात ना मानी।। कर ली उसने अपनी हानी।।
काने को तब मूक फैलाया। बजरंगी ने क्रोध दिखाया।।
सुरसा ने शरीर बढ़ाया। उससे बड़ा हनुमान दिखाया।
सौ योजन तक करके दिखाया। महावीर ने बदली काया।।
मच्छर बन कर कान से निकले। मुक्का मार शरीर पे उछले।।
सुरसा ने फिर शब्द सुनाए। जानती हूँ क्यों यहां पे आए।।
देवगणों की यही थी इच्छा। मैैं लूँ तुम्हारी कठिन परीक्षा।।
वीर नहीं कोई ताकतवर। लंका में लड़ले जो आकर।।
सारी हिला दोगे तुम लंका। राम नाम का बजेगा डंका।।
मैं प्रणाम तुमको करती हूँ। राह अलग अपनी करती हूंँ।।
मिट गई जब हनुमान की शंका। लगे ढूंढ़ने किधर को लंका।।
तभी सामने आनन्द आया। छटा देखकर सुख भी पाया।।
दिन में अपने को छिपा लूँ। रात को पूरा पता निकालूँ।।
मच्छर बनकर अन्दर आए। श्रीराम को वन में ध्याए।।
जैसा सुना था वैसी माया। सामने दुर्ग रावण का पाया।।
लंकिनी नो क्रोधित हो टोका। मुख फैलाकर प्रभु को रोका।।
सारी बात सुने से पहले। कहा शब्द तू अंतिम कह ले।।
मुट्ठी से प्रहार कर दिया। खून खून कड्ढों में भर दिया।।
सीता माता कहाँ पे होगी। कैसे समय बिताती होगी।।
रावण को चुपके से देखा। जिसने तोड़ी लक्ष्मण रेखा।।
शब्द सुना जब जय श्रीराम। पहुंचे उसके पावन धाम।।
नाम विभीषण उसने बताया। रावण का भाई समझाया।।
बात विभीषण सारी बताई। पापी क्रोधी मेरा भाई।।
सीता यहां चुराकर लाया। अशोक वाटिका में बिठालाया।
राम नाम की बज गई ताली। बजरंगी ने पूँछ संभाली।।
छोटे से वानर बन निकले। पेड़ पेड़ से चढ़कर उछले।।
जब सीता का दर्शन पाया। हनुमान का मन दुक पाया।।
दुःख में कांटा हुआ शरीर। दिन काटे हो बड़ी अधीर।।
बाल जटा के चोट बन गए। जिनमें दुख के कांटे गुंथ गए।।
श्रीराम की जप रही माला। कब शांत हो विरह की ज्वाला।।
ए अशोक के वृक्ष जला दे। इस जीवन की आस बुझा दे।।
हनुमान ने मुद्रिका गिराई। सीता समझी अग्नि आई।।
ध्यान से देखा तब सुख माना। श्रीराम का कहाँ ठिकाना।।
हनुमान ने कथा सुनाई। कहाँ रूके हैं वो रघुराई।।
थोड़े दिन की बात रह गई। असुअन की धारा थी बह गई।।
मन की शंका पूरी होगी। रावण की अब मृत्यु होगी।।
पेट में जागी भूख की ज्वाला। बोले आऊँगा कह डाला।।
पेड़ तोड़कर भूख मिटाई। देख के शक्ति माँ हर्षाई।।
मेघनाद ने जाकर पकड़ा। देखके रावण उनको अकड़ा।।
कौन दूत तू कहाँ से आया। बजरंगी ने नाम बताया।।
दस मुख बीस भुजाओं वाला। रावण का रंग चमके काला।।
यो(ा मंत्री खड़े बलवान। हनुमान पे सबका ध्यान।।
रावण क्रोध में आकर बोला। क्यों तूने लंका को टटोला।।
क्यों मेरे बेटे को मारा। बाग उजाड़ा हर कोई हारा।।
महावीर बजरंगी बोले। क्यों मन में भड़काता शोले।।
क्यों तूने माँ सीता चुराई। पापी तुझको लाज न आई।।
सबको वहाँ पे क्रोध चढ़ गया। मारो इसको शोर मच गया।।
तभी विभीषण बीच में बोेले। मत डालो तुम पाप फफोले।।
नीति हमको यह सिखलाए। दूत तो केवल बात बताए।।
ये है मध्य में संधि कराता। होता इसका सबसे नाता।।
दूत मारना है अन्याय। तुम्हें बताऊँ और उपाय।।
वानर को हैं पूँछ ही प्यारी। और ही कुछ कर लो तैयारी।।
रावण तभी ठहाका मारा। पूँछ जला दो करा दशारा।।
बिना पूँछ वापिस जाएगा। लज्जावश ही मर जाएगा।।
मेघनाद ने पकड़ा पूँछ को। और अकड़ाया अपनी मूँछ को।।
तेल और कपड़े लगे बाँधने। पूँछ बढ़ गई लगे हाँपने।।
तेल और कपड़े बाँधते जाएं। बार-बार प्रभु पूँछ बढ़ाएं।।
तेल घी साथ लगाते जाए। बजरंगी मन में मुस्काते।।
राक्षस ने जब आग लगाई। रावण उछला ताली बजाई।।
बजरंगी ऊपर को उछले। लेने पापी दल से सदले।।
महल अटारी फूँकते जाते। राक्षस कैसे घर को बचाते।।
दौड़के बच्चे घर से निकले। कुछ मर गए कुछ छत से फिसले।।
राक्षसनियाँ रावण को कोसें। विचलित होकर मन को मसोसें।।
काली लंका धूँ-धूँ जल गई। पर मृत्यु रावण की टल गई।।
फैला जब गहरा अंधकार। इन्द्र देवता दी फूँकार।।
कंचन नगरी धूल में मिल गई। विभीषण की कुटिया संभल गई।।
बंदीगृह का तोड़ा ताला। शनिदेव को तुरन्त निकाला।
देवताओं का फंद छुड़ाया। सबने प्रभु को शीश नवाया।।
शनिदेव ने दृष्टि डाली। कर ली लंका बिल्कुल काली।।
धुंए से कर दी और कुरूप। सारी हटाई छांव और धूप।।
बजरंगी ने छलांग लगाई। बीच समुन्दर पूँछ बुझाई।।
मिट गई जल से सारी थकान। विधिवत कीना फिर स्नान।।
माँ सीता के सन्मुख आए। बोले सारे मैं फल खाए।।
लंका की हालत समझाई। सुनके जग जननी मुस्काई।।
भेद सभी लंका का जाना। समझाया रावण न माना।।
प्रभु राम संग फिर आऊँगा। वानर भालू सब लाऊँगा।।
जीतेंगे लंका रघुराई। थोड़े दिनों में होगी लड़ाई।।
आपको अभी ले जा सकता हूँ। रावण बंदी बना सकता हूँ।।
रघुवर ही ये कार्य करेंगे। और धर्म की नींव धरेंगे।।
केवल सूचना लेने आया। कहाँ पर है उनकी महामाया।।
मुद्रिका देकर की पहचान। आपको सेवक मैं हनुमान।।
मुझे भी कोई निशानी दे दो। संदेश जो देना कह दो।।
चूढ़ामणि सीता ने देकर। राम नाम को मुख में लेकर।।
कहा प्रभु से शीश आइए। इस दासी को ले ही जाइए।।
यदि विलम्ब हो जाएगा। मानव चोला जल जाएगा।।
करुण विलाप से मन घबराया। बजरंगी माँ को समझाया।।
उछले तभी आकाश में आये। रावण रामदूत से घबराये।।
प्रभु शरण में वापस आए। चूड़ामणि देकर हर्षाए।।
राम ने उनको गले लगाया। लक्ष्मण भाई ने सुख पाया।।
हनुमान जो भेद बताया। सुग्रीव अंगद ध्यान लगाया।।
कब कैसे कहाँ करना है। बाँध के पुल आगे बढ़ना है।।
वानर भालू निकट बुलाए। शिला चट्टानें ले सब आए।।
राम नाम से लांघें समुन्दर। वीर गति थी सबके अन्दर।।
शिला पे जब राम नाम लिखते। फेंक के जल में पत्थर तैरते।।
पुल ऐसे बढ़ता है जाता। हनुमान का मन हर्षाता।।
राम नाम की महिमा न्यारी। हनुमान ने बात ….।।
जिस पत्थर राम लिखा है। चमत्कार हम सबको दिखा है।।
टेढ़े-मेढ़े और नुकीले। लाल-हरे और काले-पीले।।
जो भी पत्थर काम में ओ। प्रभु कृपा से दन्य बनाए।।
पुल बांधा हनुमान ते आगे। वानर भालूू पीछे भागे।।
राम लखन सुग्रीव अंगद। चलते पुल पर होके गद्गद।।
हनुमान जो करके दिखाया। कोई अब तक ना कर पाया।।
जिनका मन शरणागत होता। पाता सब कुछ कुछ न खोता।।
दूर हो गई मन की शंका। दिखी सामने काली लंका।।
गेर लिया यान मैदान। चेहरों पर छाई मुस्कान।।
बजरंगी ने राह दिखाई। यहाँ छावनी डालो बाई।।
काँटों की एक बाढ़ लगाई। वानर भालू आज्ञा पाई।।
कुछ दिन बाद में कीनी चढ़ाई। आमने सामने सेना आई।।
बादल काले आ मंडराए। रामा दल ले आगे आए।।
रावण को नाना समझाया। क्यों तुमने सीता को चुराया।।
माल्यवान मंत्री घबराया। रावण के कुछ समझ ना आया।।
मेघनाद क्रोधित हो आया। हाथी घोड़े सैनिक लाया।।
हनुमान को दूर से देखा। शक्ति बाण फिर उसने फेंका।।
खून हड्डियाँ पीब की वर्षा। धनुष बाण और हाथ में फरसा।।
माया उसने अपनी चलाई। बाणों की थी झड़ी लगाई।।
लक्ष्मणजी ने बाण चलाए। मेघनाद उनसे घबराए।।
हनुमान ने मारा मुक्का। रहा गया वो तो हक्का-बक्का।।
बजरंगी ने शिला उठाई। चारों ओर थी धूल उड़ाई।।
छिन्न-भिन्न सब कर दी शक्ति। राम भजन की उनमें भक्ति।।
मेघनाद ऊपर को भागा। टूट गया शक्ति का धागा।।
छल और कपट से नीचे आया। वानर भालू खाने आया।।
वीर घातिनी शक्ति निकाली। जो नहीं जाती कभी भी खाली।।
लक्ष्मणजी को घायल करके। भागा अपने आप संभल के।।
लक्ष्मणजी को उठाने आया। बजरंगी ने उसे भगाया।।
रामा दल लक्ष्मण के लाए। लंका सारी खुशी मनाए।।
शोक में डूब गए श्रीराम। कौन संवारे बिगड़े काम।।
हनुमान लंका को भागे। सुषेण वैद्य को ढूंढ़ने लागे।।
सुषेण वैद्य कहा बूटी लाओ। सूर्य अस्त से पहले आओ।।
प्रभु राम को शीश नवा के। वेग से उड गये वो घबराके।।
रावण ने छल माया दिखाई। कालनेमी को युक्ति बताई।।
जल के पास हनुमान आए। मार ही देना बिन बताए।।
कालनेमी बजरंग से बोला। मेरे गुरुवर है शिव भोला।।
जानता हूँ तुम क्यों यहाँ आए। संजीवनी बूटी दूँगा बताए।।
मेरे कमंडल का जल पी लो। फिर जाकर पेड़ों को छीलो।।
दीक्षा दूँगा प्यास बुझा लो। जीवन अपना सफल बना लो।।
करने गए जब प्रभु स्नान। खींचा दुष्टा मकड़ी ध्यान।।
टाँग खींच मुख पकड़ के मारा। अस्परा वेश मकड़ी ने धारा।।
एक बात कहती हूँ जाकर। मुनि कपटी है घोर निशाचर।।
कालनेमी दक्षिण को पुकारा। पूँछ लपेटा पटक कर मारा।।
गुरु दक्षिणा में दी मुक्ति। कर ली उसने राम की भक्ति।।
द्रोणाचल पर्वत पर आए। यक्ष-गंधर्व किन्नर हर्षाए।।
जब कोई बूटी समझ न आई। बजरंगी ने शक्ति दिखाई।।
पर्वतों को हाथों में उठाया। मुख लंका की ओर घुमाया।।
पशु पक्षी जितने थे हिल गए। देख के …. वृक्ष उछल गये।।
अयोध्या नगरी जब आए। वीर भरत देख घबराए।।
तीर चला हनुमत को गिराया। मुख पे राम राम का पाया।।
बजरंगी ने विपदा बताई। बात भरत की समझ मेें आई।।
भरत ने भी धीरज ना खोया। राम विरह में हृदय रोया।।
भाई लक्षमण कहीं छूट ना जाए। भाग्य विघ्नता रूठ न जाए।।
तभी बाण पे तीर चलाया। संकट मोचन को बिठलाया।।
ध्यान से फिर पर्वत को संभाला। होनी को जल्दी ही टाला।।
लखन लाल के प्राण बचाए। फिर लंक पे झपटे जाए।।
कुंभकरण की माया मिटाई। शक्ति अपनी वीर दिखाई।।
अहिरावण ने छला था दिखाया। राम लखन पाताल में लाया।।
बजरंगी को पा चला गया। पापी कैसी चाल चल गया।।
काली रूप में दर्श दिखाया। बलि देने जब पापी आया।।
राम लखन को उसने झुकाया। बजरंगी ने शस्त्र घुमाया।।
अहिरावण की बलि चढ़ा के। काली माई का डंका बजाके।।
देवी देवता का कर ध्यान। यु( क्षेत्र आए हनुमान।।
मूर्छित हो गए दोनों भाई। नागों ने जब दृष्टि उठाई।।
गरुड़ रूप से फंद छुड़ाया। देखके रावण था पछताया।।
रावण कुंभकरण मरवाकर। मेघनाद को आए सुलाकर।।
राक्षस कुल का नाश कर दिया। त्रेता का कल्याण कर दिया।।
विभीषण का तिलक कराके। सीता माँ को सुखी बनाके।।
जिस लंका को आप जलाया। राम नाम से स्वर्ग बनाया।।
सारे अपने वचन निभाकर। श्रीराम की लला गाकर।।
अयोध्या संदेश लाए। पुष्पक ऊपर बैठके आए।।
राज्याभिषेक का अवसर आया। सुग्रीव अंगद-नल को बुलाया।।
चौदह वर्ष बाद दिन आया। अयोध्या नगरी मंगल गाया।।
जाम्बवानस संग भालू लाए। छोटे बड़े बंदर हर्षाए।।
हनुमान इसके अधिकारी। लीला देख रहे त्रिपुरारी।।
सीता हार को थोड़ा संभाला। बजरंगी के गले में डाला।।
हनुमान घबराए थोड़ा। वज्र तुल्य दांतों से जोड़ा।।
उसमें पाया केवल पत्थर। दे नहीं पाया प्रश्न का उत्तर।।
चमक दमक ये किसके काम की। यदि नहीं मूरत श्रीराम की।।
मुझको आशीर्वाद चाहिए। अपने प्रभु का प्रसाद चाहिए।।
सारी माला जब बिखरा दी। सबके मन में चिंता बसा दी।।
लंकेश्वर विभीषण बोले। बड़े चतुर तुम बड़े हठीले।।
बजरंगी ने रूप बढ़ाया। चीर के सीना अपना दिखाया।।
डर में विराजे सीताराम। सारी सभा ने किया प्रणाम।।
सीता माँ ने दिया सिंदूर। जिससे कष्ट हो गया दूर।।
हाथ जोड़कर खड़े हनुमान। दे सकता हूँ प्रभु मैं प्राण।।
हृदय में है तुम्हारा वास। सदा ही रखना अपने पास।।
शरण आपकी जो भी आता। अपना जीवन सफल बनाता।।
द्वापर में साथी मोहन के। बाल रूप में बंदर बन के।।
सालासर के धाम में आए। रोग, शोक और कष्ट मिटाए।।
सभी दिशाओं में हैं सुन्दर। तुलसीदास के हृदय अन्दर।।
महिमा ‘शर्मा’ लिखी न जाए। सादर तुमको शीश नवाए।।
दोहा
प्रेमपूर्वक जो करें, बजरंगी का ध्यान।
जीवन में आनन्द हो, ध्यान रखें हनुमान।।
उलझन कभी न आए उसको, जो करता है आप।
राम लला की कृपा से हट जाएं सब पाप।।
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