“The achievements of 'Chandra' of the Mehrauli Prasasti remind one more of Samudra Gupta than Chandra Gupta II” Discuss.
(v) इस बात का कोई साक्ष्य नहीं है कि चन्द्रवर्मन ने सिन्धु नदी की सात सहायक नदियों को पार कर वाह्निकों को पराजित किया था।
(vi) सुसुनिया अभिलेख में न तो मेहरौली स्तम्भ लेख का उल्लेख है और न ही महरोली स्तम्भ लेख में सुसुनिया अथवा पुष्करण का ।
(vi) मेहरौली के लौह स्तम्भ लेख के ‘चन्द्र' को अधिराज कहा गया है जबकि सुसुनिया अभिलेख में चन्द्रवर्मन को महाराजा की उपाधि से अलकूत किया गया है।
(3) चन्द्रगुप्त प्रथम के साथ समीकरण - डॉ. फ्लीट, राधागोविंद बसाक तथा डॉ. एस. के. आयंगर आदि विद्वानों ने मेहरौली लौह स्तम्भ के चन्द्र का समीकरण गुप्त वंश के सम्राट चन्द्रगुप्त प्रथम से किया है। अपने मत के पक्ष में उन्होंने अप्रलिखित तर्क दिये है।
मेहरौली के लौह स्तम्भ लेख
(i) जिस तरह मेहरौली स्तम्भ लेख के चन्द्र ने अपने भुजबल से साम्राज्य स्थापित किया था। उसी तरह गुप्त सम्राट चन्द्रगुप्त प्रथम ने भी अपने पराक्रम से एक विस्तृत साम्राज्य की स्थापना की थी।
(ii) जिस तरह मेहरौली के चन्द्र ने अपने भुजबल से महाराजाधिराज की उपाधि धारण की । उसी तरह चन्द्रगुप्त प्रथम ने भी अपने बाहुबल से अधिराज या महाराजाधिराज की उपाधि धारण की।
(ii) जिस प्रकार मेहरौली के चन्द्र ने बंगाल पर विजय प्राप्त की उसी प्रकार चन्द्रगुप्त प्रथम को राज्य भी बंगाल तक विस्तृत था।
(iv) मेहरौली स्तम्भ लेख का चन्द्र और चन्द्रगुप्त प्रथम दोनों ही वैष्णव धर्म के अनुयायी थे ।।
(v) मेहरौली स्तम्भ लेख की लिपि चन्द्रगुप्त प्रथम के समय की सूचक है ।
खण्डन - अधिकांश विद्वान इतिहासकारों ने उपरोक्त विद्वानों के मतों को अमान्य कर दिया है। इन विद्वानों ने उपर्युक्त मतों का खण्डन करते हुए अपने तर्क के समर्थन में निम्न तर्क प्रस्तुत किये हैं
(i) इस बात का कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है कि चन्द्रगुप्त प्रथम ने सिन्धु नदी की सात सहायक नदियों को पारकर वाह्निकों को परास्त किया था।
(ii) इस बात का भी कोई साक्ष्य नहीं है कि मेहरौली का क्षेत्र चन्द्रगुप्त प्रथम के अधीन था।
(iii) चन्द्रगुप्त प्रथम ने दक्षिण की विजय नहीं की थी । दक्षिण पथ की विजय का श्रेय प्रयाग प्रशस्ति के आधार पर समुद्रगुप्त को प्राप्त है।
(iv) इस बात का भी कोई ऐतिहासिक साक्ष्य नहीं है कि चन्द्रगुप्त प्रथम ने दीर्घ काल तक शासन किया जबकि मेहरौली लौह स्तम्भ के चन्द्र का राज्य काल दीर्घकालीन था।
(v) मेहरौली स्तम्भ के चन्द्र की तरह चन्द्रगुप्त प्रथम वैष्णव मतावलम्बी नहीं था।
(4) कनिष्क के साथ समीकरण -
मेहरौली स्तम्भ लेख के चन्द्र का समीकरण कनिष्क से खोतनी पाण्डुलिपि को आधार मानते हुए डॉ. आर. सी. मजमूदार ने किया है इस समीकरण को जोर्नल ऑफ रॉयल एशिया सोसायटी बंगाल 1942 के पृष्ठ 19 पर भी स्पष्ट किया गया है । खोतान पाण्डुलिपि में कनिष्क को चन्द्र कनिष्क के नाम से सम्बोधित किया गया है । सिलवाँ लेवी ने भी इस मत का समर्थन किया है। इनका यह मानना है कि यह एक धर्म सहिष्णु नरेश था। कनिष्क के राज्य में वाह्लिक अथवा बैक्ट्रिया था और उसने लम्बे समय तक शासन भी किया।
खण्डन - अधिकतर विद्वानों ने डॉ. मजूमदार के तर्को को अमान्य करते हुए इन मतों के खण्डन में निम्नलिखित तर्क प्रस्तुत किये हैं।
(i) कुषाण सम्राट कनिष्क बौद्ध मतावलम्बी था जबकि मेहरौली स्तम्भ का चन्द्र वैष्णव धर्मावलम्बी था।
(ii) मेहरोली स्तम्भ लेख का लिपि प्रमाण इस बात का सूचक है कि इस प्रशस्ति के चन्द्र का समय गुप्तकाल ही रहा होगा।
(iii) कनिष्क का विदित नाम कनिष्क ही था और उसे किसी भी अभिलेख में चन्द्र कनिष्क के नाम से सम्बोधित नहीं किया गया। |
(iv) कनिष्क ने दक्षिणी भारत की विजय भी नहीं की थी।
(v) किसी भी ऐतिहासिक तथ्य से इस बात की पुष्टि नहीं होती कि कनिष्क ने बंगाल विजय की यात्रा पूर्ण की थी।
इस प्रकार मेहरौली स्तम्भ लेख के चन्द्र का समीकरण कनिष्क से करना उचित प्रतीत नहीं होता।
(5) चन्द्रगुप्त मौर्य के साथ समीकरण -
डॉ. एच. सी. सेठ के विचारानुसार मेहरौली स्तम्भ लेख का ‘चन्द्र' चन्द्रगुप्त मौर्य ही था । वह अपने कथन के पक्ष में कहते हैं कि चन्द्रगुप्त मौर्य ही मेहरोली स्तम्भ का निर्माता था। लगभग 6 शताब्दी के बाद समुद्रगुप्त ने इस लौह स्तम्भ पर वर्तमान लेख उत्कीर्ण कराया था। श्री हरिशचन्द्र सेठ के मतानुसार मेहरौली के चन्द्र के समान चन्द्रगुप्त मौर्य ने भी अपने पराक्रम एवं भुजबल से राज्य प्राप्त किया था और उसका विस्तार हिन्दू कुश पर्वत तक किया था । दक्षिण भारत का भी कुछ भाग उसके राज्य के अधीन था । चन्द्रगुप्त मौर्य ने भी मेहरौली स्तम्भ के चन्द्र की तरह दीर्घकाल तक शासन किया। इस प्रकार मेहरौली स्तम्भ के चन्द्र को चन्द्रगुप्त मौर्य ही समझना चाहिए।
खण्डन - अधिकतर इतिहासकार डॉ. एच. सी. सेठ के मत को स्वीकार नहीं करते । यह विद्वान इतिहासकार श्री सेठ के मत का खण्डन निम्नलिखित तर्क प्रस्तुत करते हुए करते
(1) मेहरौलीस्तम्भ का चन्द्र वैष्णव मतावलम्बी था जबकि चन्द्रगुप्त मौर्य की वैष्णव धर्म में प्रवृत्ति न होने के साक्ष्य मिलते हैं और साक्ष्यों के माध्यम से यह भी ज्ञात होत है कि वह अपने जीवन के उत्तरार्द्ध में जैन मतावलम्बी बन गया था।
(ii) मेहरौली स्तम्भ लेख की लिपि मौर्य काल के बहुत बाद की है।
(iii) इस प्रकार का भी कोई ठोस प्रमाण नहीं मिलता जिसको सच मानकर यह कहा जा सके कि समुद्रगुप्त ने चन्द्रगुप्त मौर्य को अपना पूज्यनीय मानकर इस लेख को उत्कीर्ण कराया था। यदि इस लौहस्तम्भ लेख में चन्द्रगुप्त मौर्य की विजयों का उल्लेख होता तो इसमें चन्दराजा तथा यूनानियों की पराजय का भी उल्लेख इस लेख में अवश्य ही होता ।।
इस प्रकार मेहरौली स्तम्भ लेख के चन्द्र का समीकरण चन्द्रगुप्त मौर्य से करना असमीचीन होगा।
(6) चन्द्रगुप्त द्वितीय के साथ समीकरण -
उपरोक्त ज्ञात तथ्यों के आधार पर मेहरौली स्तम्भ के चन्द्र को चन्द्रगुप्त द्वितीय से समीकृत करना कहीं अधिक तर्कसंगत होगा। डॉ. वी. ए. स्मिथ,डॉ. हार्नले, डॉ. जायसवाल, डॉ. अल्टेकर, डॉ. राधाकुमुद मुकर्जीड़ॉ. भण्डारकर एवं डॉ. डी सी सरकार आदि इतिहासकारों का भी यही मत है। अपने मत के समर्थन में इन | विद्वान इतिहासकारों ने निम्नलिखित मत प्रस्तुत किया है।
(i) चन्द्रगुप्त द्वितीय की ताम्र मुद्राओं पर इसका नाम केवल ‘चन्द्र' मिलता है। इस Yधार पर मेहरौली की प्रशस्ति के ‘चन्द्र' तथा इन ताम्र मुद्राओं के चन्द्र का समीकरण सिद्ध होता है ।
(ii) उपलब्ध अभिलेखों एवं मुद्राओं से विदित होता है कि चन्द्रगुप्त द्वितीय वैष्णव धर्म का अनुयायी था। मेहरौली की प्रशस्ति का ‘चन्द’ भी वैष्णव धर्म में आस्था रखता था तथा इस धर्म का पक्का अनुयायी था। गुप्त अभिलेखों में चन्द्रगुप्त द्वितीय को परम भागवत उपाधि से विभूषित किया गया है। अतः मेहरौली के स्तम्भ लेख के चन्द्र' को चन्द्रगुप्त द्वितीय ही समझना चाहिए।
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