संतान प्राप्ति के ऐसे उपाय जो निरर्थक नहीं अचूक है सदियों से

संतान प्राप्ति के उपाय : Santan prapti ke upay

१. मंत्रसिद्ध चैतन्य पीली कौड़ी को शुभ मुहूर्त में विधिपूर्वक बंध्या स्त्री की कमर में बाँधने से उस निःसंतान स्त्री की गोद शीघ्र ही भर जाती है।

२. बरगद के पत्ते पर कुमकुम द्वारा स्वास्तिक का निर्माण करके उस पर चावल एवं एक सुपारी रखकर किसी देवी मंदिर में चढ़ा दें। इससे भी संतान सुख की प्राप्ति यथाशीघ्र होती है।

३. घर से बाहर निकलते समय यदि काली गाय आपके सामने आ जाए तो उसके सिर पर हाथ अवश्य फेरें। इससे संतान सुख का लाभ प्राप्त होता है।

४. भिखारिन को गुड दान करने से भी संतान सुख प्राप्त होता है।

५. विवाहित स्त्रियों नियमित रूप से पीपल की परिक्रमा करने और दीपक जलाने से उन्हें संतान अवश्य प्राप्त होती है।

६. श्रवण नक्षत्र में प्राप्त किये गए काले एरंड की जड़ को विदिपूर्वक कमर में धारण करने से स्त्री को संतान सुख अवश्य मिलता है।

७. रविवार के दिन यदि विधिपूर्वक सुगन्धरा की जड़ लाकर गाय के दूध के साथ पीसकर की स्त्री खावें तो उसे अवश्य मिलता है।

८. संतान सुख प्राप्ति का एक उपाय यह भी है की गेंहू के आटे की गोलियां बनाकर उसमे चने की दाल एवं थोड़ी सी हल्दी मिलाकर गाय को गुरुवार के दिन खिलाये।

९. चावलों की धोबन मे नींबू की जड़ क बारीक पीसकर स्त्री को पीला देने के उपराण, यदि एक घंटे के भीतर स्त्री के साथ उसके पति द्वारा सहवास-क्रिया की जाए तो वो स्त्री निश्चित रूप से कन्या को ही जन्म देती है . यह प्रयोग तब किया जाना चाहिए जब कन्या प्राप्ति की अभिलाषा हो |

१०. यदि संतानहीन स्त्री ऋतुधर्म से पूर्व ही रेचक औषधियों (दस्तावर दवाओं) के द्वारा अपने उदार की शुद्धि कर लेने के पश्चात गूलर के बन्दाक को श्रद्धापूर्वक लाकर बकरी के दूध के साथ पीए और मासिक धर्म की शुद्धि के उपरान्त सेवन पुत्र रतन की ही प्राप्ति होगी।

११. पुष्य नक्षत्र में असगंध की जड़ को उखाड़कर गाय के दूध के साथ पीसकर पीने और दूध का ही आहार ऋतुकाल के उपरांत शुद्ध होने पर पीते रहने से उस स्त्री की पुत्र-प्राप्ति की अभिलाषा अवश्य ही पूरी हो जाती है .

१२. पुत्र की अभिलाषा रखने वाली स्त्री को चाहिए की वा ऋतु-स्नान से एक दिन पूर्व शिवलिंगी की बेल की जड़ मे तांबे का एक सिक्का ओर एक साबुत सुपारी रखकर निमंत्रण दे ओर दूसरे दिन सूर्योदय से पूर्व ही वहाँ जाकर हाथ ज्ड़कर प्रार्थना करे – हे विश्ववैद्या ! इस पुतरहीन की चिकित्सा आप स्वयम् ही करें! पुत्र च्चवि-विहीन इसकी कुटिया की संतान के मुखमंडल की आभा से आप ही दीप्त करें! ऐसा कहकर शिवलिंग की बेल की जड़ मे अपने आँचल सहित दोनों हाथों को फैलाकर घुटने के बल बैठ जाएँ ओर सिर को बेल की जड़ से स्पर्श कराकर प्रणाम करें! तत्पश्चात शिवलिंगी के पाँच पके हुए लाल फल तोड़कर अपने आँचल मे लपेट कर घर आ जाएँ . उसके बाद काली गाय के थोड़े से दूध मे शिवलिंगी के सभी दाने पीस-घोलकर इसी के दूध के साथ पी जावें तो पुत्र प्राप्ति होगी .



१३. रविवार को पुष्य नक्षत्र में आक (मदार ) की जड़ बंध्या स्त्री की कमर में बाँध दे इससे गर्भधारण करके वह संतान को जन्म अवश्य ही देगी।

१४. पति-पत्नी दोनं अथवा दोनं में से की भी आस्था और श्रद्धाभाव से भगवान श्रीकृष्ण का एक बालरूपी चित्र अपने कक्ष में लगाकर प्रतिदिन १०८ बार निम्न मन्त्र का जप पुरे एक वर्ष तक करें। उसकी मनकामना अवश्य ही पूर्ण हो जायेगी। मन्त्र यह है –
देवकी सूत गोविन्द वासुदेव जगत्पते। देहि में तनयं कृष्ण त्वामह शरणंगता।।
नोट – शिशु के जन्म के उपरान्त २१ बच्चों को भोजन कराकर यथाशक्ति दक्षिणा अवश्य देनी चाहिए।

१५. गुरुवार या रविवार को पुष्य नक्षत्र में श्वेत पुष्प वाली कटेरी की जड़ उखाड़ लाएं। मासिक-धर्म से निवृत होकर,ऋतू-स्नान कर लेने पर चौथे या पांचवें दिन कटेरी की को लगभग दस गाय में (दूध बछड़े वाली गाय का हो) पीसकर पुत्र की अभिलषिणी उस स्त्री को पिला दें जिसके पहले से कोई संतान न हो (अर्थात विवाहोपरांत संतान का मुह भी जिसने न देखा हो)। जड़ी-सेवन के ठीक ( इससे पहले नहीं) स्त्री पति-समागम करे तो प्रथम संतान के रूप में पुत्र को ही जन्म देगी।

नोट – (कटेरी एक काँटेदार झड़ी जाती का पौधा होता है, जिस पर श्वेत डब्ल्यू पीत वार्णीय पुष्प लगते हैं| उक्त प्रयोग के लिए श्वेत पुष्प की कटेरी की जड़ ही प्रयुक्त होती है | उसे ही शुभ दिन, मुहूर्त अथवा शुभ पर्व या पुष्य नक्षत्र मे आमंत्रित करके लानी चाहिए |

१६. यदि किसी रजस्वला स्त्री को स्वप्न में नागदेवता के दर्शन हो जाएँ तो स्वयं को कृतार्थ समझना चाहिए | यह इस बात का संकेत है की उसके द्वारा की गई क्रिया सफल हुई है| उसे अवश्य तथा शीघ्र ही सुन्दर, यशस्वी और दीर्घायु संतान प्राप्त होगी |



१७. यदि किसी के संतान नहीं हो रही हो तो उसके लिए बताया गया है की जब किसी व्यक्ति की मृत्यु हो गई हो और अर्थी पर भान्धकार उसे शमशान घाट ले जा रहा हो और वो अर्थी जब किसी चौराहे पर पहुंचे तो उस समय जिस स्त्री के बच्चा नहीं हो रहा है वो स्नान कर नए पीले व्वस्त्र पहनकर पहले से ही उस चौराहे पर कड़ी रहे और जब अर्थी चौराहे पर पहुंचे तो वह स्त्री तुरंत पश्चिम से पूरब की और उस अर्थी के नीचे से निकल जाए | यह ध्यान करते हुए कहे की तुझे मेरे पुत्र के रूप में जन्म लेना है|

१८. जब पुष्य नक्षत्र एवं रविवार का योग हो, अर्थात रवि पुष्य वाले दिन विधि पूर्वक अश्वगंधा की जड़ लाकर उसे छाया में सुखाकर, पीस और छानकर चूर्ण कर लें| नित्य सवा तोला चूर्ण भैंस के दूध के साथ सेवन करें| इसके साथ ही निम्न मन्त्र का एक माला जप भी अवश्य करें |
ओम नमः शकी रुपाय मम गृह पुत्रं कुरु कुरु स्वः

१९. पुरुष ( पति) अस्विनी नक्षत्र से एक दिन पहले बेल के वृक्ष को आमंत्रित कर आये और दूसरे दिन उस वृक्ष का पत्ता लाकर एक रणवाली गाय के दूध में पीसकर स्त्री (पत्नी) को पिलायें और उसके साथ सहवास-क्रिया करे तो एक बार में ही स्त्री के गर्भ ठहर जाता है |

२०. श्रवण नक्षत्र में काले अरण्ड की जड़ को प्राप्त करके कमर में धारण करने वाली स्त्री को संतान-सुख की प्राप्ति अवश्य होती है |

२१. स्वस्थ व निरोगी होने पर भी संतान-सुख से वंचित स्त्री (जिसके पति में कोई कमी न हो) श्वेत लक्ष्मणा-बूटी की इक्कीस की संख्या में गोली बनाकर रखे और एकेक गोली प्रतिदिन गाय के दूध के साथ सेवन करें तो उसे संतान का लाभ अवश्य होगा |

२२. यदि कोई संतानहीन स्त्री, दूसरी किसी स्त्री की प्रथम संतान (लड़का) की नाल को प्राप्त करके और सुखाकर बारीक पीस लें और पुराने गुड के साथ सेवन करे अथवा शुद्ध सोने के ताबीज में भरवाकर बायीं भुजा में धारण कर लें| इस क्रिया से संतानवती अवश्य होगी |

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