ओशो ने हिमालय से पुकारा (Osho ne Himalaya se pukara Bhajan in hindi Mp3)
ओशो ने हिमालय से पुकारा, है कोई ले वन हारा।
कितने जन्म गंवाए हमने, मिटा न मन का अंधेरा;
जब-जब मुक्ति चाही तब-तब, बढ़़ता गया नया घेरा।
हाय फिर भी आया ना उजाला, है कोई ले वन हारा।
कितनी राहें बदली हमने, कितने भटके-भूले;
रूप संवारे, संवरन पाया, दर्पण झूठन बोले।
सच्चा ना रूप निखारा, है कोई ले वन हारा।
कितने महल बना ये हमने, खंडहर हो गए सपने;
चमन कितने हमने लगाए, बिखर गए सब अपने।
तज गोरख धंधाये सारा, है कोई ले वन हारा।
बदलीसा की बदली हाला, चूके रागी-बैरागी;
ऐसी मदिराओ शोने ढाली, सिद्धार्थ को तारी लागी।
जागा भाग हमारा, है कोई ले वनहारा।
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