कैसे जिऊँ री माई, हरि बिन कैसे जिऊँ री

कैसे जिऊँ री माई, हरि बिन कैसे जिऊँ री/कैसे-जिऊँ-री-माई-हरि-बिन-कै


कैसे जिऊँ री माई, हरि बिन कैसे जिऊँ री ।।टेक।।
उदक दादुर पीनवत है, जल से ही उपजाई।
पल एक जल कूँ मीन बिसरे, तलफत मर जाई।
पिया बिन पीली भई रे, ज्यों काठ घुन खाय।

औषध मूल न संचरै, रे बाला बैद फिरि जाय।
उदासी होय बन बन फिरूँ, रे बिथा तन छाई।
दासी मीराँ लाल गिरधर, मिल्या है सुखदाई।।

(उदक=पानी, मीन=मछली, तलफत=तड़प कर,
बाला=वल्लभ,प्रियतम)

Post a Comment

0 Comments