प्रभुजी मैं राज़ कर

प्रभुजी मैं राज़ कर/प्रभुजी-मैं-राज़-कर


प्रभुजी मैं अरज करुं छूं म्हारो बेड़ो लगाज्यो पार॥

इण भव में मैं दुख बहु पायो संसा-सोग निवार।

अष्ट करम की तलब लगी है दूर करो दुख-भार॥

यों संसार सब बह्यो जात है लख चौरासी री धार।

मीरा के प्रभु गिरधर नागर आवागमन निवार॥

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