को विरहिणी को दुःख जाणै हो

को विरहिणी को दुःख जाणै हो / ko-virhani-ko-dukh-jane-ho


को विरहिणी को दुःख जाणै हो ।।टेक।।

मीराँ के पति आप रमैया, दूजा नहिं कोई छाणै हो

रोगी अन्तर वैद बसत है, वैद ही ओखद जाणै हो।

सब जग कूडो कंटक दुनिया, दरध न कोई पिछाणै हो

को विरहिणी को दुःख जाणै हो ।।टेक।।

जा घट बिरहा सोई लखी है, कै कोई हरि जन मानै हो।

विरह कद उरि अन्दर माँहि, हरि बिन सुख कानै हो।

को विरहिणी को दुःख जाणै हो ।।टेक।।

मीराँ के पति आप रमैया, दूजा नहिं कोई छाणै हो

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