बोध गया

बोध गया बिहार में स्थित एक बौद्ध धार्मिक स्थल है। बिहार बौधगया के आध्यात्मिक महत्त्व के कारण विश्व विख्यात है। इस स्थान को बौद्ध धर्म का तीर्थ स्थान कहा जाता है। यूनेस्को द्वारा इस शहर को विश्व विरासत स्थल घोषित किया गया है। यहां स्थित महाबोधि मंदिर को बेहद विशेष माना जाता है।

बोध गया का इतिहास
मान्यतानुसार गौतम बुद्ध ने फाल्गू नदी के किनारे बोधिवृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त किया था। तीन दिन तक लगातार तपस्या के बाद बैसाख पूर्णिमा के दिन उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। इस स्थान को बौद्ध सभ्यता का केन्द्र बिन्दू माना जाता है। बुद्ध की मृत्यु के पश्चात, मौर्य शासक अशोक ने यहां सैकडों मठों का निर्माण कराया था।यहां स्थित महाबोधि मंदिर अपनी वास्तुकला के लिए भी प्रसिद्ध है। इस मंदिर में भगवान बुद्ध की पद्मासन की मुद्रा में मूर्ति स्थापित है।

बोधगया का त्यौहार

बोधगया में बुद्ध जयन्ती के अवसर पर विशेष आयोजन होते हैं। नये साल के अवसर पर यहां महाकाली पूजन कर मठों को पवित्र किया जाता है। भगवान बुद्ध और बौद्ध धर्म से जुड़ी शिक्षाओं के लिए बोध गया एक शानदार जगह है।

महाबोधि मंदिर – Bodh Gaya Temple In Hindi :-


यहां स्थित महाबोधि मंदिर अपनी वास्तुकला के लिए भी प्रसिद्ध है। मुख्‍य मंदिर के पीछे बुद्ध की लाल बलुए पत्‍थर की 7 फीट ऊंची एक मूर्त्ति है। यह मूर्त्ति विजरासन मुद्रा में है। इस मूर्त्ति के चारों ओर विभिन्‍न रंगों के पताके लगे हुए हैं जो इस मूर्त्ति को एक विशिष्‍ट आकर्षण प्रदान करते हैं। राजा अशोक को महाबोधि मन्दिर का संस्थापक माना जाता है। निःसन्देह रूप से यह सबसे पहले बौद्ध मन्दिरों में से है जो पूरी तरह से ईंटों से बना है और वास्तविक रूप में अभी भी खड़ा है। महाबोधि मन्दिर की केन्द्रीय लाट 55 मीटर ऊँचा है और इसकी मरम्मत 19वीं शताब्दी में करवाया गया था। इसी शैली में बनी चार छोटी लाटें केन्द्रीय लाट के चारों ओर स्थित हैं। महाबोधि मन्दिर चारों ओर से पत्थरों की बनी 2 मीटर ऊँची चहारदीवारी से घिरा है। कुछ पर कमल बने हैं जबकि कुछ चहारदीवारियों पर सूर्य, लक्ष्मी और कई अन्य हिन्दू देवी-देवताओं की आकृतियाँ बनी हैं। मंदिर समूह में सुबह के समय घण्‍टों की आवाज मन को एक अजीब सी शांति प्रदान करती है।

कहा जाता है कि तीसरी शताब्‍दी ईसा पूर्व में इसी स्‍थान पर सम्राट अशोक ने हीरों से बना राजसिहांसन लगवाया था और इसे पृथ्‍वी का नाभि केंद्र कहा था। जताकास के अनुसार, दुनिया में कोई भी दूसरी जगह बुद्धा के भार को सहन नहीं कर सकती। बुद्ध लिपिकारो के अनुसार जब इस पूरी दुनिया का विनाश होंगा तब बोधिमंदा धरती से गायब होने वाली अंतिम जगह होंगी। परंपराओ का यह भी कहना है की वहाँ आज भी कमल खिलते है। महात्माओ के अनुसार, बोधि वृक्ष का उगम भी उसी दिन हुआ था जिस दिन भगवान गौतम बुद्धा का जन्म हुआ था।

बोधगया में बुद्ध जयन्ती के अवसर पर विशेष आयोजन होते हैं। नये साल के अवसर पर यहां महाकाली पूजन कर मठों को पवित्र किया जाता है।

Post a Comment

0 Comments