आदिगुरू श्री शंकराचार्य/aadiguru shree sankraachary in hindi mp3
आदिगुरू श्री शंकराचार्य द्वारा रचित यह शिवस्तव वेद वर्णित शिव की स्तुतिप्रस्तुत करता है, शिव के रचयिता, पालनकर्ता एव विलयकर्ता विश्वरूप का वर्णन करता यह स्तुति संकलन करने योग्य है।
पशूनां पतिं पापनाशं परेशं
गजेन्द्रस्य कृत्तिं वसानं वरेण्यम्
जटाजूटमध्ये स्फुरद्गाङ्गवारिं
महादेवमेकं स्मरामि स्मरारिम्
(हे शिव आप) जो प्राणिमात्र के स्वामी एवं रक्षक हैं, पाप का नाश करने वालेपरमेश्वर हैं, गजराज का चर्म धारण करने वाले हैं, श्रेष्ठ एवं वरण करने योग्य हैं,जिनकी जटाजूट में गंगा जी खेलती हैं, उन एक मात्र महादेव को बारम्बार स्मरणकरता हूँ|
महेशं सुरेशं सुरारातिनाशं
विभुं विश्वनाथं विभूत्यङ्गभूषम्
विरूपाक्षमिन्द्वर्कवह्नित्रिनेत्रं
सदानन्दमीडे प्रभुं पञ्चवक्त्रम्
हे महेश्वर, सुरेश्वर, देवों के देव, दु:खों का नाश करने वाले विभुं विश्वनाथ (आप)विभुति धारण करने वाले हैं, सूर्य, चन्द्र एवं अग्नि आपके तीन नेत्र के सामान हैं।ऎसे सदा आनन्द प्रदान करने वाले पञ्चमुख वाले महादेव मैं आपकी स्तुतिकरता हूँ।
गिरीशं गणेशं गले नीलवर्णं
गवेन्द्राधिरूढं गुणातीतरूपम्
भवं भास्वरं भस्मना भूषिताङ्गं
भवानीकलत्रं भजे पञ्चवक्त्रम्
(हे शिव आप) जो कैलाशपति हैं, गणों के स्वामी, नीलकंठ हैं, (धर्म स्वरूप वृष)बैल की सवारी करते हैं, अनगिनत गुण वाले हैं, संसार के आदि कारण हैं, प्रकाशपुञ सदृश्य हैं, भस्म अलंकृत हैं, जो भवानिपति हैं, उन पञ्चमुख (प्रभु) को मैं भजता हूँ।
शिवाकान्त शंभो शशाङ्कार्धमौले
महेशान शूलिञ्जटाजूटधारिन्
त्वमेको जगद्व्यापको विश्वरूपः
प्रसीद प्रसीद प्रभो पूर्णरूप
हे शिवा (पार्वती) पति, शम्भु! हे चन्द्रशेखर! हे महादेव! आप त्रिशूल एवं जटाधारण करने वाले हैं। हे विश्वरूप! सिर्फ आप ही सम्पूर्ण जगत में व्याप्त हैं। हे पूर्णरूप आप प्रसन्न हों, प्रसन्न हों।
परात्मानमेकं जगद्बीजमाद्यं
निरीहं निराकारमोंकारवेद्यम्
यतो जायते पाल्यते येन विश्वं
तमीशं भजे लीयते यत्र विश्वम्
हे एकमात्र परमात्मा! जगत के आदि कारण! आप इच्छारहित, निराकार एवं ॐकार स्वरूप वाले हैं, आपको सिर्फ प्रण (ध्यान) द्वारा ही जाना जा सकता है, आपके द्वारा ही सम्पुर्ण सृष्टि की उत्पति होती है, आप ही उसका पालन करते हैं, तथा अंतत: उसका आप में ही लय हो जाता है। हे प्रभू मैं आपको भजता हूँ।
न भूमिर्नं चापो न वह्निर्न वायु-
र्न चाकाशमास्ते न तन्द्रा न निद्रा
न गृष्मो न शीतं न देशो न वेषो
न यस्यास्ति मूर्तिस्त्रिमूर्तिं तमीडे
जो न भूमि हैं, न जल, न अग्नि, न वायु और न ही आकाश, – अर्थात आपपंचतत्वों से परे हैं आप तन्द्रा, निद्रा, गृष्म एवं शीत से भी अलिप्त हैं। आप देशएव वेश की सीमा से भी परे हैं हे निराकार त्रिमुर्ति मैं आपकी स्तुति करता हूँ।
अजं शाश्वतं कारणं कारणानां
शिवं केवलं भासकं भासकानाम्
तुरीयं तमःपारमाद्यन्तहीनं
प्रपद्ये परं पावनं द्वैतहीनम्
हे अजन्मे (अनादि), आप शाश्वत हैं, नित्य हैं, कारणों के भी कारण हैं। हे कल्यान मुर्ति (शिव) आप ही एक मात्र प्रकाशकों को भी प्रकाश प्रदान करने वालेहैं। आप तीनो अवस्थाओ से परे हैं। हे अनादि, अनंत आप जो कि अज्ञान से परे हैं, आपके उस परम् पावन अद्वैत स्वरूप को नमस्कार है।
नमस्ते नमस्ते विभो विश्वमूर्ते
नमस्ते नमस्ते चिदानन्दमूर्ते
नमस्ते नमस्ते तपोयोगगम्य
नमस्ते नमस्ते श्रुतिज्ञानगम्य ॥
हे विभो, हे विश्वमूर्त आपको नमस्कार है, नमस्कार है। हे सबको आनन्द प्रदानकरने वाले सदानन्द आपको नमस्कार है, नमस्कार है। हे तपोयोग ज्ञान द्वाराप्राप्त्य आपको नमस्कार है, नमस्कार है। हे वेदज्ञान द्वारा प्राप्त्य (प्रभु) आपकोनमस्कार है, नमस्कार है।
प्रभो शूलपाणे विभो विश्वनाथ
महादेव शंभो महेश त्रिनेत्र
शिवाकान्त शान्त स्मरारे पुरारे
त्वदन्यो वरेण्यो न मान्यो न गण्यः
हे त्रिशूलधारी ! हे विभो विश्वनाथ ! हे महादेव ! हे शंभो ! हे महेश ! हे त्रिनेत्र ! हेपार्वतीवल्लभ ! हे शान्त ! हे स्मरणिय ! हे त्रिपुरारे ! आपके समक्ष न कोई श्रेष्ठहै, न वरण करने योग्य है, न मान्य है और न गणनीय ही है।
शंभो महेश करुणामय शूलपाणे
गौरीपते पशुपते पशुपाशनाशिन्
काशीपते करुणया जगदेतदेक-
स्त्वंहंसि पासि विदधासि महेश्वरोऽसि
हे शम्भो! हे महेश ! हे करूणामय ! हे शूलपाणे ! हे गौरीपति! हे पशुपति ! हेकाशीपति ! आप ही सभी प्रकार के पशुपाश (मोह माया) का नाश करने वाले हैं। हेकरूणामय आप ही इस जगत के उत्तपत्ति, पालन एवं संहार के कारण हैं। आपही इसके एकमात्र स्वामी हैं।
त्वत्तो जगद्भवति देव भव स्मरारे
त्वय्येव तिष्ठति जगन्मृड विश्वनाथ
त्वय्येव गच्छति लयं जगदेतदीश
लिङ्गात्मके हर चराचरविश्वरूपिन्
हे चराचर विश्वरूप प्रभु, आपके लिंगस्वरूप से ही सम्पूर्ण जगत अपने अस्तित्वमें आता है (उसकी उत्पति होती है), हे शंकर ! हे विश्वनाथ अस्तित्व में आने केउपरांत यह जगत आप में ही स्थित रहता है – अर्थात आप ही इसका पालन करतेहैं। अंतत: यह सम्पूर्ण सृष्टि आप में ही लय हो जाती है।
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